निठारी कांड, जिसके अंग्रेजी में “निठारी हत्याकांड” के नाम से भी जाना जाता है, एक भयावह अपराध था जो नोएडा, उत्तर प्रदेश, भारत में 2005-2006 में सामने आया था। इस घाटना से जुड़ी कथा में हत्याएं (हत्याएं) और अपराधों के चारों ओर दो लोग शामिल हैं, सुरिंदर कोली (Surinder Koli) और मोनिंदर सिंह पंढेर (Moninder Singh Pandher) के खिलाफ थे।
सुरिंदर कोली, एक नौकर, और उसके मालिक, मोनिंदर सिंह पंधेर, उनके मिलजुल कर किये गये दरिंदगी हत्याएं करने के आरोप में पकड़ लिये गये। इन घटनों का पता जब 2006 में चला, तो इसने भारत में चर्चा का विषय बन गया। ये कांड एक ऐसा कांड था जहां पर महिलाएं और बच्चे खो जाती थीं, और उनके शवो को बारीक तरह से काटा जाता था।
कितनी हुई हत्याएँ – निठारी कांड
इस समय तक के अनुमान, 16 से 38 तक अपराध हो चुके थे, लेकिन सच्चाई के आने के बाद, इस संख्या में इज़ाफ़ा हुआ। निठारी कांड में मुख्य रूप से निठारी गांव के शिकार बनते थे। इस घाटना ने समाज के मनुष्य-मर्यादा और कानून व्यवस्था पर बड़ी प्रभाव डालते हुए लोगो के मन में व्यथा और उग्रता को उत्पन्न किया।
मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरिंदर कोली के खिलाफ की गई तहकीकात के दौरान, पुलिस अधिकारियों ने भी इस मामले में शिकायत दर्ज कराई थी। इन दोनो अरोपियों को मौत की सजा सुनाई गई। इस मामले ने भारतीय कानून व्यवस्था में सुधार की संभावनाओं को प्रकट किया और लोगो ने संवेदनाशीलता की ओर ध्यान आकर्षित किया।
निठारी कांड मामले में ज्यादातर आरोपियों को मौत की सजा सुनाई गई थी. ये सज़ाएँ हत्यारे को दी गईं। मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरिंदर कोली जैसे मुख्य आरोपियों को सजा सुनाई गई और मौत की सजा दी गई.
आरोपों से किया गया बरी
कांड के 18 साल बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली को बरी कर दिया है और अन्य आरोपी मोनिंदर सिंह पंडेर को भी बाइज्जत छोड़ने का आदेश दिया है. हाईकोर्ट ने मंगलवार को इस मामले में फैसला सुनाते हुए ‘लापरवाही तरीके और लापरवाह’ जांच के लिए उत्तर प्रदेश (यूपी) पुलिस और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) सहित जांच एजेंसियों की फटकार लगाई है. कोर्ट ने पाया कि निठारी हत्याकांड में एकमात्र अपराधी के रूप में घरेलू नौकर सुरेंद्र कोली पर ध्यान केंद्रित करके, जांच अधिकारियों ने कुख्यात अपराधों के पीछे अंग तस्करी के व्यापार के असली मकसद होने की महत्वपूर्ण संभावना को नजरअंदाज किया है.
- निठारी कांड में हाईकोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है. क्योंकि पहली बार कोर्ट ने 12 केस में फांसी की सजा पाने वाले आरोपी को सभी केसों के एक साथ बरी किया है. संभवत यह पहला मामला है जब देश में किसी कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है. आपको बता दें कि सुरेंद्र कोली के खिलाफ जांच एजेंसी ने 19 केस दर्ज किए थे, जिसमें से 3 मामलों में वह शुरुआत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी गई थी. वहीं 16 मामलों में तीन मामलों में कोर्ट आरोपी कोली को बरी कर चुकी है. रिम्पा हलदार के मामले में हाईकोर्ट कोली की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल चुका है.
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हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि अदालत में अभियोजन पक्ष बार-बार अपना पक्ष बदलता रहा है. केस की शुरुआत में पंडेर और सुरेंद्र कोली दोनों पर इस निठारी हत्याकांड का पूरा आरोप लगया गया. बाद में अभियोजन पक्ष ने इस मामले में सिर्फ सुरेंद्र कोली को ही आरोपी बनाया और सारा दोष उस पर मढ़ दिया.
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इस केस का सबसे बड़ी खामी थी कंकालों की बरामदगी. जांच के दौरान सभी कंकाल नाले से मिले जो निठारी स्थित डी-5 और डी-6 की सीमा पर थे. इस केस में किसी एक कंकाल की बरामदगी मोनिंदर सिंह पढ़ेर के घर से नहीं हुई.
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इस केस में एक चौंकाने वाली बात सुरेंद्र कोली द्वारा हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में सामने आई थी. वर्ष 14 मई 2015 को हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया था कि केंद्रीय महिला और बाल कल्याण विभाग के विशेषज्ञों ने निठारी कांड पर जांच रिपोर्ट बनाई थी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि सभी शवों के धड़ गायब थे और इस रिपोर्ट में शक जताया गया कि अंगों की तस्करी की गई हो. रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि छोटे बच्चों के अंग प्रत्यारोपण की बेहद मांगा रहती है.
क्या हुआ समाज पर प्रभाव
निठारी कांड में व्यापक जांच और आधिकारिक न्यायिक प्रक्रिया के तहत नियतात्मक दंड की घोषणा की गई। यह घटना भारतीय कानूनी प्रणाली में एक स्मारकीय घटना थी और इसने कानूनी प्रणाली का अभ्यास करने वाले लोगों की सुरक्षा, संरक्षण और सोच में बदलाव लाया।
निठारी कांड भारत में लोकप्रियता प्राप्त करने वाले और भारतीय समाज की मानसिकता पर गहरा प्रभाव डालने वाले एक महत्वपूर्ण घाटना थी। यह कांड हमेशा याद दिलाता है कि समाज में सुरक्षा और बच्चों की सुरक्षा को कितना महत्व देना चाहिए।
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