क्रिस हेम्सवर्थ की ‘घोस्टबस्टर्स रिबूट’ और ‘थॉर’ सीरीज में अब तक की उनकी सर्वश्रेष्ठ भूमिकाओं के चलते उनके फैंस की गिनती में लगातार इजाफा देखा गया है. मगर दुर्भाग्य से नए नेटफ्लिक्स एक्शन मूवी ‘एक्सट्रैक्शन’ में एक स्टार के आकर्षण के पैमाने पर वह खरे नहीं उतर पाए हैं. क्या इसमें वाकई हेम्सवर्थ की एक्टिंग की गलती है या इसके लिए ‘एवेंजर्स: एंडगेम’ और ‘कैप्टन अमेरिका: सिविल वॉर’ जैसी फिल्मों के स्टंट डायरेक्टर रह चुके सैम हारग्रेव जिम्मेदार हैं, जिन्होंने इस फिल्म का निर्देशन किया है।
एक्सट्रैक्शन में हेम्सवर्थ ‘टायलर रेक’ नाम के एक शख्स की भूमिका हैं जो एक ड्रग माफिया (पंकज त्रिपाठी) के बेटे ‘ओवी’ (रुद्राक्ष जायसवाल) को बचाने की कोशिश करता है. ओवी का अपहरण ढाका का ड्रग माफिया करता है, जिसके चंगुल से उसे छुड़ाने के लिए रेक को ढाका, बांग्लादेश बुलाया जाता है. यहां ढाका के ड्रग माफिया की मदद वहां की स्टेट भी करती है। भारतीय ड्रग माफिया की तरफ से दूसरे एंड पर में ‘सजु’ (रणदीप हुड्डा) को भी ओवी की सुरक्षा के लिए ढाका भेजा जाता है। ओवी को रेस्क्यू करने के की जद्दोजहद में कहानी आगे बढ़ती और तमाम एक्शन सीन्स फिल्माए जाते हैं।
अधिकांश एक्शन थ्रिलर की तरह एक्सट्रैक्शन प्लॉट के लेयर्स और कैरेक्टर्स की गहराई में नहीं उतर पाती है. फिल्म में किरदार छोटी-छोटी कड़ियां में अपने-अपने हिस्से का रोल अदा करते हैं, मसलन – कोई हमला करता है, कोई पलटवार करता है, कोई निगरानी करता है और कोई हमला करने का प्लान बनाता है. उन ग्रे शेड्स कैरेक्टर्स और उनकी दुनिया के बारे में शायद ही कोई जानकारी है जैसे- ड्रग इंडस्ट्री के बारे में कोई जानकारी, ढाका के अपराधियों और स्टेट के बीच की सांठगांठ, टायलर की निजी जिंदगी और उसके टीम का अंदरूनी मसला। इन सभी बातों पर फिल्म पूरी तरह से खामोश है।
कभी-कभी सबसे छोटी-छोटी चीजें भी आपको सवालात के घेरे में ला देती हैं. एक्सट्रैक्शन में चालीस मिनट तक टायलर रेक और ओवी ढाका की इमारतों में बंदूकधारियों को चकमा देते नजर आते हैं. वे एक अपार्टमेंट से दूसरे अपार्टमेंट में घुसते हैं और बैकग्राउंड में हिंदी फिल्मों के गाने सुनाई देते हैं. उनके एक अपार्टमेंट में घुसते वक्त ‘दीदी तेरा देवर दीवाना’ गाना बज रहा होता है। वे एक मंजिल से 10 सेकंड के लिए गुजरते हैं तो दूसरे अपार्टमेंट से ‘मेहंदी लगा के रखना’ गाना सुनाई देता है. क्या संभावना है कि 90 के दशक की सबसे प्रसिद्ध हिंदी फिल्मों के गाने हाल के वक्त में ढाका के घरों में बज रहे होंगे? खैर ये तो पठकथा का हिस्सा है जो बेहद ही कमजोर नजर आई. फिल्म में सिवाए गोली बारूद के ज्यादा कुछ नहीं दिखाई देता है। ऐसा लगता है कि स्नाईपर और असॉस्ट राइफल से पबजी मोबाइल गेम का फिल्माकन किया जा रहा हो।
हालांकि, रोमांच के स्तर पर सिंगल शॉट के तौर पर फिल्माएं गए 16 मिनट सांसे रोकने जैसे लगते हैं. जब टायलर और ओवी को पुलिस ढूंढ़ती हैं और वे शहर की इमारतों में छिपते हैं. इस दौरान टायरल अपनी सिंगल शूट गन से दर्जन भर पुलिसवालों के एके-47 का सामना करता है. अन्य सीक्वेंस में इमारतों से कूदना और ट्रैफिक और चलती हुई सड़क के बीच टायरल और सजु की लड़ाई होना। क्लाइमेक्स में होने वाली लड़ाई में स्नाइपर और असॉल्ट राइफल का इस्तेमाल रोमांच जरूर पैदा करता है।
सिनेमैटोग्राफी के स्तर पर फिल्म में पैन कैमरा और वीएफएक्स का इस्तेमाल बेदतर तरीके से किया गया है। एक्शन थ्रिलर जैसी फिल्मों में इस स्तर पर बेहद जरूरी हो जाता है कि वास्तविकता और इल्यूजन में खाई कम से कम रहे। फिल्म में इस स्तर को मेंटेन करने की कोशिश की गई है।
बहरहाल फिल्म की अन्य बारीकियों की बात करें तो फिल्म के डायलॉग्स बहुत ही सीमित हैं जो एक एक्शन फिल्म को सहूलियत देते हैं। पंकज त्रिपाठी फिल्म में एक बार ही नजर आते हैं। इसके अलावा फिल्म का ज्यादा फोकस क्रिस हेम्सवर्थ और रणदीप हु्ड्डा पर है। एक वीडियो गेम के लेवल की तरह फिल्म की कहानी आगे बढ़ती हैं। वीडियो गेम की ही तरह पड़ाव दर पड़ाव फिल्म में एक्शन बढ़ता जाता है और आखिर में एक्ट्रैक्शन यानी ओवी की जान बचाना फिल्म का आखिरी पड़ाव होता है। इसके साथ ही गेम ओवर हो जाता है यानी फिल्म खत्म हो जाती है।
फिल्म का कुछ हिस्सा मुंबई और ज्यादातर हिस्सा ढाका में शूट किया गया है. एक्सट्रैक्शन किसी भी वास्तविक फिल्म से परे है. सीधे तौर पर बात करें तो रोस कॉमिक्स के मिथक या वकंडा जैसे आसान यूटोपिया को जेहेन में रख कर ढाका की गलियों और शहर के उन्य हिस्सों पर फिल्माना बिल्कुल ही गैर वास्तविक लगता है।
फिल्म कहानी के ट्विस्ट को लेकर लाचार नजर आती है और एक्शन के ओवर डोज से भरी पड़ी है. निर्देशक सैम हारग्रेव को जरूरत है कि वह अपनी अगली फिल्मों के लिए स्टंट डायरेक्टर का केंचुल उतार कर स्क्रिप्ट और कहानी के साथ-साथ एक्शन का सही तालमेल दिखाएं।